Tuesday 28 January 2020

धार्मिक, सहिष्णु, न्यायप्रिय

राम रावण का युद्ध अपने चरम पर था, रामजी की सेना रावण की सेना पर भारी पड़ रही थी लेकिन जब भी रावण का सिर धड़ से अलग करते, अट्टहास लगाता रावण फिर जीवित हो जाता। इससे रामजी विचलित होने लगे थे।
विभीषण रावण का भाई था लेकिन स्वभाव में रावण से एकदम विपरीत था। धार्मिक, सहिष्णु, न्यायप्रिय था। रावण का अंत नहीं कर पाने से चिंतित रामजी जब युद्धविराम के बाद अपने तंबू में इसी में विचारमग्न थे तब विभीषण ने बताया कि - हे प्रभु रावण की नाभि में अमृत है और जब तक आप उसकी नाभि पर वार नहीं करेंगे रावण कभी नहीं मरेगा।
अगले दिन रामजी ने रावण की नाभि पर वार किया और रावण का अंत हो गया। रामजी ने विभीषण का राजतिलक कर उसे लंका का राजा बना दिया।
विभीषण ने रामजी का साथ देकर धर्म और न्याय के साथ दिया लेकिन रावण का भेद बताकर अपने माथे पर सदा के लिए एक कलंक भी लगवा लिया - "घर का भेदी लंका ढाए"
समय बीतता गया और विभीषण अब नए स्वरूप में सामने आने लगा। धर्म और न्याय का साथ छोड़कर विभीषण सिर्फ अधर्मियों और आतताइयों का साथ देने लगा।
इसे नियति कहें या देश का दुर्भाग्य कि केवल एक परिवार ने इस देश पर रावण की तरह राज भी किया और विभीषण की ही तरह शत्रुओं को अपने भेद बताए, शत्रुओं के हाथों देश की निरीह जनता को मरवाया, रावण की तरह अपनी ही प्रजा पर अत्याचार किये और अपने ही जैसे असंख्य भेदियों की एक बड़ी सेना तैयार कर डाली।
आज ये भेदिये देश के सिस्टम में ऐसे समा गए हैं जैसे पानी में कोई रंग मिल जाता है। हाथ में हथियार लिए, खतरनाक इरादे लिए आतंकियों की पहचान तो आसानी से की जा सकती है लेकिन सिस्टम में रहकर, देश को खोखला करने वाले, देश की अर्थव्यवस्था, सैन्य शक्ति, शिक्षा, चिकित्सा, पुलिस, राजनीति, साहित्य, कला, पत्रकारिता जैसे तमाम क्षेत्रों में गुप्त रूप से बैठे इन विभीषणों ने देश और हिंदुत्व को भारी नुकसान पहुँचाया है।
गांधी नेहरू के सामने देश के हर क्रांतिकारी को बौना साबित करने का प्रयास किया गया। केवल इनको महान बताया गया। मुगलों को आक्रमणकारी, अत्याचारी बताने की बजाय उन्हें महान बताया गया। मुगलों द्वारा आक्रमण करके जिन शहरों के नाम बदले गए उनको वापस मूल नाम देना तो दूर उल्टे उन्हीं आक्रान्ताओं के नामों पर सड़कों, मोहल्लों का नामकरण कर दिया गया।
हमें पढ़ाया गया कि आज़ादी तो चरखे से आई थी, अहिंसा से आई थी, एक थप्पड़ खाने के बाद दूसरा गाल आगे करने से आई थी, ब्रिटिशों की पत्नियों से 'मधुर संबंध' बनाने से आई थी। एक मुस्लिम परिवार अपने नाम, सरनेम को बदलता रहा, कभी नाम के आगे पंडित, कभी नाम के पीछे नेहरू, गाँधी, वाड्रा फिर गाँधी लगाता रहा। देश और हिंदुत्व को खोखला करता रहा। कश्मीर को विवादित बनाकर वर्षों तक मौज काटता रहा। सरकारी मशीनरी का निजी तौर पर इस्तेमाल करता रहा। सिर्फ एक ही धर्म की तरफदारी करता रहा। हज़ारों धमाकों के बावजूद उसे "इस्लामिक आतंकवाद" बताने की बजाय "भगवा आतंकवाद" बताने लगा।
इस देश की हर समस्या की जड़ में केवल यही एक परिवार है और हज़ारों वर्ष पुराने राष्ट्र पर एक ज़बरदस्ती थोपा गया तथाकथित "राष्ट्रपिता" है।
कोई व्यक्ति किसी राष्ट्र में जन्म लेकर उस राष्ट्र का पिता कैसे हो सकता है? राष्ट्र, जन्मभूमि, जननी का कोई पिता कैसे हो सकता है? भगतसिंह, चंद्रशेखर आज़ाद को आज भी आधिकारिक तौर पर क्रांतिकारी नहीं कहा जाता है लेकिन एक विशाल देश पर एक फर्जी राष्ट्रपिता थोप दिया जाता है। देश की मुद्रा पर उसकी फोटो, देश के हर सरकारी दफ्तर, शहर में उसकी तस्वीरें, मूर्तियाँ, सड़कें थोप दी जाती हैं।
गाँधी जिस रस्सी से अपनी बकरी को बाँधते थे वो तो संग्रहालय में सुरक्षित है लेकिन जिन रस्सियों पर देश के असंख्य क्रांतिकारियों को फाँसी दी गई वो सारी रस्सियाँ उनकी चिताओं के साथ ही जला दी गई।
अगर किसी ने अपने बच्चे का नाम रावण नहीं रखा तो विभीषण भी नहीं रखा।
धर्म, न्याय का साथ देकर भी विभीषण आज भी बदनाम है और आज अधर्म, अन्याय का साथ देनेवाले देश के तमाम विभीषण खुद को देशभक्त और महान बताते फिर रहे हैं।
लेकिन जिस तरह रावण का अंत हुआ उसी तरह इन विभीषणों का अंत भी निश्चित है।
नियति सबका हिसाब करती है।

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